World Mental Health Day 2020 : मानसिक सेहत आखिरकार स्वास्थ्य बीमा में शामिल क्या सच में है असरदार

World Mental Health Day 2020 : मानसिक सेहत आखिरकार स्वास्थ्य बीमा में शामिल क्या सच में है असरदार

नरजिस हुसैन

देश फिलहाल कोरोना महामारी का सामना कर रहा है और देर-सवेर इस पर काबू भी पा लेगा। लेकिन, डर इस बात का है कि क्या कम वक्त में ही देश अगली महामारी के लिए खुद को तैयार करने की हालत में है। क्योंकि अगली महामारी देश में बहुत जल्द मानसिक बीमारियों के तौर पर सामने आने वाली है। 2017 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसांइसेज (निमहैंस) के 22वें कॉन्वोकेशंन में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का भी कहना था, “भारत मानसिक स्वास्थ्य चुनौती का सामना ही नहीं कर रहा बल्कि, वो एक संभावित महामारी का सामना कर रहा है”। साल 2017 में लैंसेट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक देश में 1990-2017 के बीच करीब 197.3 मिलियन भारतीय किसी-न-किसी रूप में मानसिक विकारों के शिकार हो रहे हैं। जो कि वाकई चौकानें वाले आंकड़े है।

पढ़ें- 10 प्रतिशत से अधिक वयस्क मानसिक समस्याओं के शिकार

पिछले कुछ सालों में मानसिक स्वास्थ्य रोगियों की तादाद तेजी से बढ़ी है और उसके बाद अब कोरोना के दौर में भी हर उम्र के लोगों में मानसिक विकारों के खूब मामले सामने आ रहे हैं। हालांकि, कोरोना दौर से पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO ने 2020 तक भारत में करीब 20 फीसद आबादी के मानसिक रोगियों में तब्दील होने का खतरा बताया था। भारत इस मसले को कमतर समझकर स्वास्थ्य क्षेत्र के कई और बड़े मुद्दों को तरजीह देता रहा। लेकिन, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मामले लगातार उसके सामने आते रहे कभी आकंड़ो की शक्ल में तो कभी हादसों के तौर पर और आखिरकार 07 अप्रैल, 2017 में भारतीय संसद ने मानसिक स्वास्थ्य सेवा कानून, 2017 को मंजूरी दे दी लेकिन, 07 जुलाई, 2018 को यह अमल में आया। ये वक्त और ये कदम मानसिक रोगियों और इस क्षेत्र में काम रहे तमाम लोगों के लिए काफी अहम था। जाहिर है इस कानून ने हर उम्र के मानसिक रोगियों के हक और बराबरी की बात करते हुए इसके इलाज, खर्च, पुनर्वास, बीमा समेत तमाम पहलुओ की बात कर इन सबके हाथों को मजबूत किया।

01 अक्तूबर से मानसिक स्वास्थ्य भी बीमा में शामिल

इसी सिलसिले में 01 अक्तूबर, 2020 को आखिरकार वो दिन भी आया जब सरकारी एजेंसी इंश्योरेंस रेग्युलेटरी एंड डेवलेपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आईआरडीएआई या इरडा) ने देश की सभी बीमा कंपनियों को मानसिक स्वास्थ्य को स्वास्थ्य बीमा में शामिल करने का सख्ती से आदेश दिया। मानसिक रोगों को बीमा दायरे में लाने के अमल ने देश में सभी पर यह बात भी साफ कर दी कि मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है और ये कि जिस तरह शरीर पर दिखने वाली बीमारियों का इलाज जरूरी है उसी तरह भावनाओं, अहसास और दिल और दिमाग की बेचैनी जैसी न दिखने वाली बीमारियों का इलाज भी उतना ही जरूरी है। इस फैसले के बाद बहुत उम्मीद की जा रही है कि समाज में मानसिक रोगियों के लिए डर और उनसे नफरत का माहौल कुछ कम हो। क्योंकि इसी डर और तिरस्कार के चलते ये ठीक होने वाले विकार अक्सर रोगी के लिए जानलेवा बन जाते हैं। इस कदम से मानसिक रोगियों के इलाज में प्राइवेट काउंसिलिंग पर होने वाले खर्च की अनसुनी आवाज को भी सुनने की उम्मीद है।

22 जुलाई, 2020 के इंश्योरेंस रेग्युलेटरी एंड डेवलेपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आईआरडीएआई या इरडा) के सर्कुलर के मुताबिक आखिरकार सभी बीमा कंपनियां अब से मानसिक स्वास्थ्य को स्वास्थ्य बीमा में शामिल करेगी। बीमा नियामक ने इसके अलावा सामान्य और स्वास्थ्य बीमा में कुछ और भी बदलाव करने की हिदायत बीमा कंपनियों को दी है जिसे सभी ने इस बार माना।

हालांकि, दिल्ली की टारगेट रियलटेक प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक, रमेश चंद्र जोशी का कहना है, “मानसिक स्वास्थ्य को बीमा में शामिल करने से प्रीमियम पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि  इसी साल फरवरी में काफी बीमा कंपनियां 4.8% प्रीमियम बढ़ा चुकी है। उन्होंने इरडा के इस फैसले और बीमा कंपनियों के लंबे वक्त तक मानसिक स्वास्थ्य को बीमा कवर देने की अनाकानी खत्म होने को दोनों ही पार्टियों के लिए फायदेमंद बताया है। कस्टमर को ये फायदा होगा कि जिसकी मानसिक स्वास्थ्य की मेडिकल हिस्ट्री है या नही सबको अब बीमा कवर मिलेगा और बीमा कंपनियों को भी अक्तूबर के बाद से ज्यादा कस्टमर मिलेगे।“

नामी बीमा कंपनी स्टार हेल्थ एंड एलायंस इंश्योरेंस कंपनी के प्रबंधक, प्रवीण कुमार भारद्वाज का कहना है कि, “ये बात सही है कि प्रीमियम पर मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करने से कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि ये बीमा का महज एक अतिरिक्त फीचर है लेकिन, कंपनी ओपीडी कवरेज भी इसी प्रीमियम में दे ये जरूरी नही। कोई भी बीमा कंपनी 24 घंटे के हॉस्पिटिलाजेशन को ही कवर के दायरे में रखती है।” उन्होंने बताया कि फिलहाल अभी इस बारे में उनकी कंपनी ने कोई फैसला नहीं लिया है। उनका कहना है कि सभी कंपनियों को यह तय करने में अभी थोड़ा और वक्त लग सकता है।

एडवोकेट और मेंटल हेल्थ एक्टिविस्ट गौरव कुमार बसंल का कहना है, ”हम सभी जानते हैं कि बीमा कंपनियां बिजनेस कर रही है लेकिन, वे इंसान की जिंदगी के बदले कारोबार की सोचे या मुनाफे की सोचे तो ये नही हो सकता। इसके अलावा बात सिर्फ बीमा की ही नही है बल्कि उससे जुड़े उस डर की भी है जिसका किसी भी मानसिक रोगी को सामना करना पड़ता है।” उन्होने बताया कि बीमा में कवरेज मिलने से मानसिक विकारों से जूझ रहे लोगों को न सिर्फ  फाइनेंशियल सिक्युरिटी मिलेगी, इसके साथ ही समाज में उन्हें बराबरी का दर्जा भी मिलना शुरू होगा।

बीमा दायरे में मानसिक सेहत जोड़ने की जद्दोजहद

2017 मे बने और 2018 में लागू हुए मानसिक स्वास्थ्य कानून के सेक्शन 21(4) में सरकार ने साफतौर से यह बात कही है कि जिस तरह शारीरिक बीमारियों का स्वास्थ्य बीमा होता है उसी तरह अब उसी बीमा में मानसिक स्वास्थ्य को भी जोड़ा जाए। यानी ये कि शारिरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अलग-अलग दो बीमा न होकर एक ही बीमा में दोनों शामिल होंगे। ऐसा कर कानून ने सबको बराबरी का दर्जा दिया और इस तरह भेदभाव की सभी गुंजाइशों को खत्म किया। सरकार ने यह एक अच्छी पहल तो की लेकिन, अभी इसे अमल में लाना बाकी था। मामले पर अमल न होने पर बीमा नियामक इरडा ने 16 अगस्त, 2018 में सभी बीमा कंपनियों को कानून के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य को स्वास्थ्य बीमा में शामिल करने के निर्दश दिए।

22 अक्तूबर, 2018 को एक बार फिर इरडा ने इस बारे में राय दी। इसके ठीक एक साल बाद 27 सितंबर, 2019 को इरडा ने स्टैंर्डडिजेशन ऑफ इक्सक्यूजन के तहत फिर कुछ गाइडलाइंस कंपनियों को जारी की। बात आगे न बढ़ने पर एडवोकेट गौरव कुमार बसंल ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। 17 जून, 2020 को याचिका की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इरडा को एक नोटिस भेजकर इस कोताही की वजह पूछी। एडवोकेट बसंल ने अपनी याचिका में 2019 में डाली गई RTI को भी शामिल किया था।

फरवरी, 2019 में इरडा ने कोर्ट से कहा कि कोई भी कंपनी फिलहाल मानसिक स्वास्थ्य को स्वास्थ्य बीमा में शामिल करने को तैयार नहीं। 30 सितंबर, 2019 को इरडा ने सभी बीमा कंपनियों को स्वास्थ्य बीमा में मानसिक विकारों को शामिल करने के निर्देश दिए। 22 जून, 2020 को इरडा ने हेल्थ बीमा के लिए सभी बीमा कंपनियों के लिए एक सर्कुलर जारी किया जिसमें एक बार फिर से वही बात दोहराई लेकिन, इस बार सख्ती से सभी बीमा कंपनियों को 01 अक्तूबर, 2020 से मानसिक विकारों को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने की आखिरी समयसीमा दी गई थी जोकि अब खत्म हुई।

बहरहाल, मानसिक स्वास्थ्य अब स्वास्थ्य बीमा में तो शामिल होने जरूर जा रहा है लेकिन, इसमें ओपीडी का खर्च शामिल नहीं है यह अभी साफ नही। लेकिन, 2018 से ठंडे पड़े इस मामले में जो कुछ हरकत आई है उससे एक खास तबके की उम्मीद तो जरूर बंधी है।

(नोट:- विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर मानसिक सेहत से जुड़ी समस्याओं की जानकारी के लिए आर्टिकल की एक सीरीज प्रस्तुत की जा रही है। यह इस सीरीज का पहला भाग है। अगला भाग जल्द ही प्रकाशित किया जाएगा।)

 

इसे भी पढ़ें-

लगातार बातचीत रोक सकती है किशोरों में बढ़ते मनोविकार

घंटों कुर्सी पर बैठने से युवा हो रहें है अवसाद रोगी: शोध

जितनी जल्दी हो सके बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य की जानकारी देनी चाहिए

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।